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श्रीसूक्तम् / Shri Suktam / Shri Sukt

  श्रीसूक्तम् ***** ॐ हिरण्यवर्णां हरिणीं सुवर्णरजतस्रजाम्  ।  चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आ वह ॥ १ ॥ तां म आवह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम् ।  यस्यां हिरण्यं विन्देयं गामश्वं पुरुषानहम् ।। २ ॥  अश्वपूर्वां रथमध्यां हस्तिनादप्रमोदिनीम् ।  श्रियं देवीमुप ह्वये श्रीर्मा देवी जुषताम् ॥ ३ ॥  कां सोस्मितां हिरण्यप्राकारामार्द्रां ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीम् ।  पद्येस्थितां पद्मवर्णां तामिहोप ह्वये श्रियम् ॥ ४ ॥  चन्द्रां प्रभासां यशसा ज्वलन्तीं श्रियं लोके देवजुष्टामुदाराम् ।  तां पद्मिनीं शरणं प्र पद्ये अलक्ष्मीर्मे नश्यतां त्वां वृणे ॥ ५ ॥ आदित्यवर्णे तपसोऽधि जातो वनस्पतिस्तव वृक्षोऽथ बिल्वः ।  तस्य फलानि तपसा नुदन्तु या अन्तरा याश्च बाह्या अलक्ष्मीः ॥ ६ ॥ उपैतु मां देवसखः कीर्तिश्च मणिना सह । प्रादुर्भूतोऽस्मि राष्ट्रेऽस्मिन् कीर्तिमृद्धिं ददातु मे ॥ ७ ॥ क्षुत्पिपासामलां ज्येष्ठामलक्ष्मीं नाशयाम्यहम् ।  अभूतिमसमृद्धिं च सर्वां निर्णुद  मे गृहात् ॥ ८ ॥ गन्धद्वारां दुराधर्षां नित्यपुष्टां करीषिणीम् ।  ईश्वरीं सर...

श्रीलक्ष्मीजी की आरती / Lakshmi ji ki Aarti

 श्रीलक्ष्मीजीकी आरती ***** ॐ जय लक्ष्मी माता, (मैया) जय लक्ष्मी माता ।  तुमको निसिदिन सेवत हर-विष्णू-धाता  ॥ ॐ ॥ उमा, रमा, ब्रह्माणी, तुम ही जग-माता ।  सूर्य-चन्द्रमा ध्यावत, नारद ऋषि गाता  ॥ ॐ ॥ दुर्गारूप निरञ्जनि, सुख-सम्पति-दाता ।  जो कोइ तुमको ध्यावत, ऋधि-सिधि-धन पाता  ॥ ॐ ॥ तुम पाताल-निवासिनि, तुम ही शुभदाता ।  कर्म-प्रभाव-प्रकाशिनि, भवनिधिकी त्राता  ॥ ॐ ॥ जिस घर तुम रहती, तहँ सब सद्गुण आता ।  सब सम्भव हो जाता, मन नहिं घबराता  ॥ ॐ ॥ तुम बिन यज्ञ न होते, वस्त्र न हो पाता।  खान-पानका वैभव सब तुमसे आता ॥ ॐ  ॥ शुभ-गुण-मन्दिर सुन्दर, क्षीरोदधि-जाता ।  रत्न चतुर्दश तुम बिन कोई नहिं पाता ॥ ॐ ॥ महालक्ष्मी (जी) की आरति, जो कोई नर गाता ।  उर आनन्द समाता, पाप उतर जाता ॥ ॐ ॥  ***** Lakshmi ji ki Aarti ***** Om Jay Lakshmi Mata, Maiya Jay Lakshmi Mata । Tumko Nisidin Sevat Har-Vishnu-Dhata ।। Uma, Rama, Brahmani, Tum hee Jag-Mata । Surya-Chandrama Dhyawat, Narad Rishi Gata ।। Durgaroop Niranjani, Sukh-Sampati-...

श्री कनकधारा स्तोत्रम् / Shri Kanakdhara Stotram

 ।। श्री कनकधारा स्तोत्रम् ।। ***** अंगहरे पुलकभूषण माश्रयन्ती भृगांगनैव मुकुलाभरणं तमालम। अंगीकृताखिल विभूतिरपांगलीला मांगल्यदास्तु मम मंगलदेवताया:।।1।। ***** मुग्ध्या मुहुर्विदधती वदनै मुरारै: प्रेमत्रपाप्रणिहितानि गतागतानि। माला दृशोर्मधुकर विमहोत्पले या सा मै श्रियं दिशतु सागर सम्भवाया:।।2।। *****  विश्वामरेन्द्रपदविभ्रमदानदक्षमानन्द हेतु रधिकं मधुविद्विषोपि। ईषन्निषीदतु मयि क्षणमीक्षणार्द्धमिन्दोवरोदर सहोदरमिन्दिराय:।।3।। *****  आमीलिताक्षमधिगम्य मुदा मुकुन्दमानन्दकन्दम निमेषमनंगतन्त्रम्। आकेकर स्थित कनी निकपक्ष्म नेत्रं भूत्यै भवेन्मम भुजंगरायांगनाया:।।4।। *****  बाह्यन्तरे मधुजित: श्रितकौस्तुभै या हारावलीव हरि‍नीलमयी विभाति। कामप्रदा भगवतो पि कटाक्षमाला कल्याण भावहतु मे कमलालयाया:।।5।। *****  कालाम्बुदालिललितोरसि कैटभारेर्धाराधरे स्फुरति या तडिदंगनेव्। मातु: समस्त जगतां महनीय मूर्तिभद्राणि मे दिशतु भार्गवनन्दनाया:।।6।। *****  प्राप्तं पदं प्रथमत: किल यत्प्रभावान्मांगल्य भाजि: मधुमायनि मन्मथेन। मध्यापतेत दिह मन्थर मीक्षणार्द्ध मन्दालसं च मकरालयकन्यकाय...